रविवार, 10 अप्रैल 2016

सुखा देवीय आपदा या मनुष्यों की बनाई आपदा



मित्रो जब आजाद कलम रोजाना आपने आसपास सूखे के बारे में होती बातो को सुनती है तो मुझे लगता है कि आज के दोर में सुखा देवीय आपदा से ज्यादा मनुष्यों की बनाई गई आपदा बन गया है | ऐसा नहीं है कि सुखा अभी ही पड़ रहा है ,सुखा पहले भी पड़ता था ; आज भी पड़ रहा है पर अंतर सिर्फ इतना ही है कि पहले सुखा भारत के कुछ राज्यों के कुछ जिलो तक ही सीमित था| अब भारत के कई राज्य इस सूखे की चपेट मे है | आजाद कलम जब ये सुखा देखती है तो वो आपने आपको व् इंसानों को ही इस का दोषी मानती है जब कहाँ जाता है कि जल ही जीवन है तो लोग इस को केवल एक नारा समझ के भूल जाते है और हाँ भारत देश तो अब केबल नारो का ही देश बनके रह गया है एक नारा जाता है दूसरा तुरंत आ जाता है कुछ लोगो को लगता है कि सूखे से हमारा क्या लेना देना है ये तो केवल किसानो की समस्या है पर वो लोग ये भूल जाते है कि किसान भी एक इंसान है | जब-जब सूखे कि बात होती है तो देश मे एक अलग ही बहस शुरू हो जाती है कोई सरकारों को दोषी मानता है तो कोई बड़े-बड़े करखानो को जिम्मेदार मानता है; वर्तमान समय तो आईपीएल के मैचो को भी दोषी माना जा रहा है;
ये सारी बाते एक ही ओर इशार करती है कि सूखे के लिए हम ही जिम्मेदार ज्यादा है क्यूकि हम एक बाल्टी पानी से भी नाहा सकते हे पर नहीं हम दो बाल्टी या इससे कही ज्यादा पानी का प्रयोग करते है अगर देखा जाये तो हम पानी बर्बाद ज्यादा करते है उसको बचाते बहुत कम है हमारे देश मे केवल एक ही बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने देश की सभी नदियों को जोड़ने की बात बोली थी पर वो बात-बात ही रहकर रहे गई सूखे की बात पहले भी हुई हे आज भी हो रही है कि वर्षा के दिनों मे हमको जल संरक्षण करना चाहिए, पानी को बर्बाद नहीं करना चाहिए पर क्या ये सब हम कर पाऐ ? नहीं हम ये सब नहीं कर पाऐ बड़े-बड़े डेम बनाने से थोड़-बहुत जल संरक्षण हो सकता है; आजाद कलम का मानना है कि  हम को ज्यादा से ज्यादा जल संरक्षण के लिये आपने आप को पानी का कम से कम प्रयोग करने के लिया प्ररित करना चाहिए जल का कम प्रयोग ही असली जल संरक्षण है | 



शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

भारत का संविधान भारत की ताकत या कमजोरी

मै आजाद कलम जब देश के तजा हालत को देखते हुए कुछ लिखने की सोचता हूँ ! तो आपने संविधान के बारे में लिखने का मन करता हे, क्यूकि आज भारत देश मे सब से ज्यादा संविधान की बात ही होती है, कोई संविधान मे दिया गया अधिकार को ढूढने की कोशिश करता है, तो कोई संविधान मे दिया गए आरक्षण को ढूढने मे लगा रहेता है और अब तो संविधान मे दिया गया समानता का अधिकार, बोलने की आजदी की बात ही नहीं होती है I अब संविधान मे दिया गए टोलरेंट और इनटोलरेंट शब्दों की बड़ी जोरो से बात होती है I अब लोग संविधान मे ये देखने की कोशिश कर रहे है, की कहीं संविधान में भारत माता की जय बोलना अनिवार्य तो नहीं है , मै आजाद कलम जब आपने आजाद विचारो को लिखने की कोशिश करता हूँ तो लोगो की नजर से लगता है की संविधान हमारे देश की के महज एक किताब है, जिसको समय –समय पर लोग आपने फायदे के लिये उपयोग करते रहेते है ! जब लोगो को आरक्षण चाहिए होता हे तो लोग संविधान मे आरक्षण के अधिकार को ढूढने लगते है I तब उनको समानता का अधिकार नजर नहीं आता है  और जब लोगो को भारत माता की जय व वंदेमातरम् बोलोना नहीं होता है, तो वो बोलते है, की संविधान में भारत माता की जय बोलना अनिवार्य नहीं है जो ठीक भी है, परन्तु फिर ये लोग संविधान मे दिया गया अनुछेद 51a को क्यू भूल जाते है जिसमे देश के प्रति मूल कर्तव्यो को बताया गया है कोई भी अनुछेद 51a  की थोड़ी सी भी बात क्यू नहीं करता है मूल कर्तव्य--भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे; I संविधान मे दिया गया यह एक महत्वपूर्ण अनुछेद है पर दुःख की बात तब होती है की जब पूरा संविधान कुछ अनुछेदो मे सिमट कर रहे जाता है ? हो सकता हे की मेरे  इन आजाद विचारो से बहुत लोग असहमत हो परन्तु मे उन लोगों को याद दिलाना चाहता हूँ की ये सब लिखने का अधिकार मुझे भी हमारे संविधान ने ही दिया हे संविधान को महज के एक किताब ना समझे ये वो हे जिससे पूरा भारत चलता है संविधान को 26 जनवरी तक ही सीमित ना रखे !!!



  ब्लॉग पड़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद