सुखा देवीय आपदा या मनुष्यों की बनाई आपदा
मित्रो जब आजाद कलम रोजाना आपने आसपास सूखे के
बारे में होती बातो को सुनती है तो मुझे लगता है कि आज के दोर में सुखा देवीय आपदा
से ज्यादा मनुष्यों की बनाई गई आपदा बन गया है | ऐसा नहीं है कि सुखा अभी ही पड़
रहा है ,सुखा पहले भी पड़ता था ; आज भी पड़ रहा है पर अंतर सिर्फ इतना ही है कि
पहले सुखा भारत के कुछ राज्यों के कुछ जिलो तक ही सीमित था| अब भारत के कई राज्य इस
सूखे की चपेट मे है | आजाद कलम जब ये सुखा देखती है तो वो आपने आपको व् इंसानों को
ही इस का दोषी मानती है जब कहाँ जाता है कि जल ही जीवन है तो लोग इस को केवल एक नारा समझ के भूल जाते है
और हाँ भारत देश तो अब केबल नारो का ही देश बनके रह गया है एक नारा जाता है दूसरा तुरंत आ जाता है कुछ लोगो
को लगता है कि सूखे से हमारा क्या लेना देना है ये तो केवल किसानो की समस्या है पर
वो लोग ये भूल जाते है कि किसान भी एक इंसान है | जब-जब सूखे कि बात होती
है तो देश मे एक अलग ही बहस शुरू हो जाती
है कोई सरकारों को दोषी मानता है तो कोई बड़े-बड़े करखानो को जिम्मेदार मानता है; वर्तमान समय तो आईपीएल के
मैचो को भी दोषी माना जा रहा है;
ये सारी बाते एक ही ओर इशार करती है कि सूखे के
लिए हम ही जिम्मेदार ज्यादा है क्यूकि हम एक बाल्टी पानी से भी नाहा सकते हे पर
नहीं हम दो बाल्टी या इससे कही ज्यादा पानी का प्रयोग करते है अगर देखा जाये तो हम
पानी बर्बाद ज्यादा करते है उसको बचाते बहुत कम है हमारे देश मे केवल एक ही बार
पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने देश की सभी नदियों को जोड़ने की बात बोली थी पर वो
बात-बात ही रहकर रहे गई सूखे की बात पहले भी हुई हे आज भी हो रही है कि वर्षा के
दिनों मे हमको जल संरक्षण करना चाहिए, पानी को बर्बाद नहीं करना चाहिए
पर क्या ये सब हम कर पाऐ ? नहीं हम ये सब नहीं कर पाऐ बड़े-बड़े डेम बनाने से थोड़-बहुत
जल संरक्षण हो सकता है; आजाद कलम का मानना है कि हम को ज्यादा से ज्यादा जल संरक्षण के लिये आपने
आप को पानी का कम से कम प्रयोग करने के लिया प्ररित करना चाहिए जल का कम प्रयोग
ही असली जल संरक्षण है |